मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही बिहार हस्तशिल्प के क्षेत्र में देश-दुनिया के लिए रोल माॅडल रहा है। 302-305 ईशा पूर्व ग्रीक यात्री मेगास्थनीज जब बिहार आए थे तो पाटलिपुत्र की शिल्पकला को देखकर हठात यह कह बैठे थे कि ऐसी कला का सृजन सिर्फ देवता ही कर सकते हैं, मनुष्यों के बस की बात यह नहीं है। अपनी उसी प्राचीन गरिमा को पुनः प्रतिष्ठित करने के उदेश्य से राज्य सरकार ने उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना की अगुआई में हस्तशिल्प के विकास के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। इसका मुख्य उदेश्य अपने इतिहास को प्रतिष्ठित करना तो है ही, राज्य के शिल्पियों का पुनरूद्धार और बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या का निवारण भी है।
वर्तमान युग भूमंडलीकरण और बाजारवाद का है। इसमें वर्चस्व उसी को प्राप्त होता है जो सर्वाधिक प्रभावशाली हो। वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसी हस्तशिल्प को स्वीकार किया जाएगा, जो सर्वाधिक विकसित व समृद्ध हो। इसे बिहार सरकार के उद्योग विभाग ने बखूबी समझा है और उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान की ओर से राज्य के शिल्पियों को बाजार की मांग के अनुरूप नये-नये डिजाईन की टेªनिंग हेतु नेशनल इंस्टीच्यूट आॅफ डिजाईन के सहयोग से उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना समेत राज्य के ग्रामीण अंचलों में कार्यरत शिल्पियों के लिए डिजाईन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन प्रारम्भ किया गया है। संस्थान में पदस्थापित कुशल शिल्पियों को भी श्री निकेतन, (पश्चिम बंगाल) एवं इंडियन इंस्टीच्यूट आॅफ क्राफ्ट एण्ड डिजाईन, जयपुर, (राजस्थान) से प्रशिक्षित कर संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम को और अधिक आधुनिक बनाया जा रहा है। राज्य के सुदूर जिलों से आकर संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षणार्थियों को छात्रावास की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है तथा उनका मानदेय 500 रूपया प्रतिमाह से बढ़ाकर 800 और 1500 रूपया कर दिया गया है। राज्य के श्रेष्ठ 20 शिल्पियों को प्रत्येक वर्ष राज्य पुरस्कार के रूप में दी जाने वाली 11,000.00 हजार रूपये की राशि को दुगुना यानी 22000.00 हजार कर दिया गया है। संस्थान का अपना बेवसाईट तैयार हो चुका है। राज्य के शिल्पियों को बाजार उपलब्ध कराने के उदेश्य से 50 स्टाॅल वाले पटना हाट के निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। संस्थान के पुराने भवनों की जगह नये भवन का निर्माण, प्रशासनिक भवन में अवस्थित पुस्तकालय, छात्रावास एवं म्यूजियमों के सौन्दर्यीकरण समेत कई योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा रहा है ताकि यहाॅं आकर देश विदेश के शोधकर्ता और पर्यटक हस्तशिल्प के पुराने और नये माॅडल का अध्ययन कर सकें।
संस्थान ने शिल्पियों को बाजार उपलब्ध कराने के उदेश्य से वर्ष 2013 से श्शिल्पोत्सवश् की शुरूआत की है। शिल्पोत्सव यानी भारत की आत्मा का उत्सव । लगभग दस दिनों तक संस्थान परिसर में चलने वाले शिल्पोत्सव में बिहार समेत देश के कोने-कोने से आये राष्ट्रीय स्तर के चर्चित शिल्पकार अपनी कला की जीवंत प्रस्तुति करते हैं। उस दौरान पूरे भारत की रगं-बिरंगी संस्कृति की झलक दिखाई देती है। हर दिन मेले-सा माहौल रहता है।
राज्य पुरस्कार की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उदेश्य से उद्योग विभाग ने पहली बार 02-09 अप्रैल, 2013 तक संस्थान परिसर में आठ दिवसीय प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें राज्य के लगभग 125 शिल्पी शामिल हुए थे। उन शिल्पियों में से 20 श्रेष्ठ शिल्पियों को राष्ट्रीय स्तर के शिल्पकारों की निर्णायक मंडली ने प्रतियोगिता स्थल पर ही राज्य पुरस्कार के लिए चयन किया है। प्रतियोगिता में शामिल 3 अन्य निःशक्त शिल्पियों को विशेष पुरस्कार से पुरस्कृत करने का निर्णय है। इस आयोजन का मुख्य उदेश्य इन श्रेष्ठ शिल्पियों का सम्मान करना तो है ही, उन्हें यह विश्वास दिलाना भी है कि सरकार उनको राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने को तत्पर है।
उप विकास पदाधिकारी उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान पटना